13 फरबरी , दोपहर ३ बजे से
सहायता राशि : 100 रु

बच्चे जन्म से ही पूर्ण है पर आधुनिक समाज में हम उन्हें समझ ही नहीं पाए है। हम सभी का जोर इस बात पर रहता है की “बच्चों को और बेहतर कैसे सिखाया जाये ? ” इसलिए हमारा जोर बेहतर स्कूल, बेहतर शिक्षक , बेहतर पुस्तकों पर रहा है। और इसका परिणाम हम सभी को पता है की आज बच्चे सीखने जैसी सहज प्रक्रिया को भी भार और एक नीरस प्रक्रिया मानते है । महज परीक्षा पास करने का एक माध्यम जिससे एक ठीक ठाक नौकरी मिल सके। न तो आज कल के बच्चे खुश है , न ही स्वस्थ और न ही उनमें ज्यादा मानवीय मूल्य दिखाई देते है। हम माने या न माने , इस पतन के लिए हमारे स्कूल , हमारी शिक्षा पद्धति मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
हमें लगता है की बच्चे और खिलौने एक दूसरे के पूरक है – जबकि जितना नुकसान आज बच्चों के विकास पर खिलौनों से हो रहा है शायद ही किसी और से। बच्चे जीवन को समझने के लिए लगातार जिज्ञासावश अपने आस पास की दुनिया टटोलते रहते है – इसे ही हम खेल कह देते है। लेकिन बच्चों के लिए कुछ भी खेल नहीं है – वे तो इस दुनिया को समझने में संलग्न है।
खिलौना देने से हम बच्चों को असल दुनिया से एक कृत्रिम दुनिया में ले जाते है – जिसके दुष्प्रभाव अनेक है।
आपका आमंत्रण है इस संवाद में जिसमे हम प्रयास करेंगे बच्चों के अंतरतम को समझने का और देखेंगे की बच्चों के विकास के लिए क्या सहायक है और क्या हानिकारक
हमें हमारा दृष्टिकोण बदल कर “बच्चे कैसे सीखते है ? ” पर लाना होगा। बच्चे सक्षम है , बच्चे पूर्ण है , बच्चे सृजनात्मक और प्रेम पूर्ण ही होते है , जब तक की हम और हमारी स्कूली व्यवस्था उन्हें बिगाड़ न देती है।
इस ऑनलाइन संवाद में हम इन्ही से जुड़े कई तथ्यों को समझने का प्रयास करेंगे , आप सादरआमंत्रित है इस यात्रा पर हमारे साथ चलने को जो न सिर्फ आपका बच्चों के प्रति नज़रिया बदलेगी बल्कि आपको अपने आप के भीतर झाँकने का भी एक अवसर प्रदान करेगी।

जिनन जी पिछले लगभग ३ दशकों से बच्चों की नैसर्गिक सीखने की प्रक्रिया और हमारी स्कूली व्यवस्था की समस्याओं पर अध्ययन कर रहे है। इन्होंने बच्चों को समझने का एक पूर्णतः नया तरीका प्रस्तुत किया जहाँ पर बच्चों से सीखना प्रमुख होता है न ही बच्चों को सिखाना। इनके वेबिनार , कार्य , लेख आदि से भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी लोगो ने प्रेरणा लेकर कई नवीन शिक्षा पध्दतियो पर कार्य शुरू किया है।